Saturday, July 11, 2009

जिंदगी नज़्म बन कर छाने लगी

जिंदगी नज़्म बन कर छाने लगी ,
मुस्कुराने लगी ,गुनगुनाने लगी!
दिल जला है तो क्या ,जख्म खाए ज़रा ,
सर्द आहें ज़रा सा सताने लगी !



मेरी रुसवाईया,मेरी तन्हाईयाँ,
साथ चलती नहीं मेरी परछाइयाँ !
फूल बन कर दुआ मुस्कुराने लगी,
सर्द आहें ज़रा सा सताने लगी!


आँखों से जो गिरी,बुँदे शबनम हुई,
टीस उठने पे भी आँखे नाम क्यों हुई?
ऐसे प्रश्नों को दुनिया उठाने लगी ,
सर्द आहें ज़रा सा सताने लगी !

वो बना है खुद गर,खुद क्यों बना?
उस सितमगर की देखों है कैसी अदा!
उसकी बातें मुझे याद आने लगी ,
सर्द आहें ज़रा सा सताने लगी !



नमी हसीन आँखों की चुरा गया कोई,

बातो ही बातो में कई ख्वाब दिखा गया कोई !

सोचा था दिल ही दिल में उमंगें जवान हो ,

रूहे जज्बात जानकर मुस्कुरा गया कोई!

ना गम का ठिकाना और ना रुसवाइयों का डर,

मुझको इस कदर जीना सिखा गया कोई!

लबों से अब टपकता है इश्के रज़ा का नूर ,

कुछ ही पलो में मुझको-मुझसे चुरा गया कोई !

हालात अब मेरे-मेरे बस में नहीं है ,

या खुद वफ़ा का शीशा दिखा गया कोई !

कांटे भी पल रहें हैं फूलों के दामन में,

ये सोचकर हौले से गुनगुना गया कोई !

इसे मोहब्बत नहीं तो भला और क्या कहें,

मेरी पलकों से मेरी नींदे भी चुरा गया कोई!


द्वारा


------अनु शर्मा

Friday, July 10, 2009