Saturday, July 11, 2009

जिंदगी नज़्म बन कर छाने लगी

जिंदगी नज़्म बन कर छाने लगी ,
मुस्कुराने लगी ,गुनगुनाने लगी!
दिल जला है तो क्या ,जख्म खाए ज़रा ,
सर्द आहें ज़रा सा सताने लगी !



मेरी रुसवाईया,मेरी तन्हाईयाँ,
साथ चलती नहीं मेरी परछाइयाँ !
फूल बन कर दुआ मुस्कुराने लगी,
सर्द आहें ज़रा सा सताने लगी!


आँखों से जो गिरी,बुँदे शबनम हुई,
टीस उठने पे भी आँखे नाम क्यों हुई?
ऐसे प्रश्नों को दुनिया उठाने लगी ,
सर्द आहें ज़रा सा सताने लगी !

वो बना है खुद गर,खुद क्यों बना?
उस सितमगर की देखों है कैसी अदा!
उसकी बातें मुझे याद आने लगी ,
सर्द आहें ज़रा सा सताने लगी !


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